उसके शहरों में ओमीक्रोन वायरस की नई लहर से जो हालात बने हैं, वे वाकई सिहरन पैदा करने वाले


 Corona। तीन साल पहले कोविड-19 ने सबसे पहले चीनी शहर वुहान में दस्तक दी थी और तब इसे दुनिया से छिपाकर बीजिंग ने जो अक्षम्य अपराध किया था, उसके लिए इतिहास उसे शायद ही कभी बख्शे, मगर इस समय उसके शहरों में ओमीक्रोन वायरस की नई लहर से जो हालात बने हैं, वे वाकई सिहरन पैदा करने वाले हैं। दुनिया इस दर्द को भोग चुकी है। वहां से जो तस्वीरें या खबरें सामने आ रही हैं, वे बताती हैं कि चीन के अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही और शवदाह गृहों के आगे कतारें लगने लगी हैं। 

ऐसे में, ये ब्योरे उसके उपहास का नहीं, बल्कि गंभीर चिंतन के मुद्दे हैं। हालात की गंभीरता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अमेरिका ने विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल बीजिंग भेजने का फैसला किया है।

यह जरूरी भी है, क्योंकि चीन बहुत सारी सूचनाएं अब भी साझा नहीं कर रहा। पिछले तीन वर्षों में महामारी से मरने वालों की आधिकारिक संख्या वह 5,242 ही बता रहा है, जबकि उसी द्वारा शासित हांगकांग में यह आंकड़ा 11 हजार के ऊपर पहुंच चुका है। 

दरअसल, ‘जीरो कोविड पॉलिसी’ के कारण बढ़ते घरेलू असंतोष को बीजिंग ताइवान व भारत के साथ सीमा-विवाद बढ़ाकर भटकाने में जुटा है। कोविड महामारी की वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था पहले ही बुरी स्थिति में थी। उससे उबरने की वह आस संजोती, मगर रूस-यूक्रेन युद्ध ने उसे और गर्त में धकेल दिया। इस जंग ने आपूर्ति शृंखला को काफी नुकसान पहुंचाया है और अब जब वैश्विक कार्य-व्यापार को पटरी पर लौटाने की कवायद जोर पकड़ने लगी थी, तब एक बार फिर चीन से निराश करने वाली खबरें आनी शुरू हो गई हैं। 

चीन संसार की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसके पस्त होने का असर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सभी देशों पर पड़ेगा। इसलिए कामना यही की जानी चाहिए कि चीन इस संक्रमण पर जल्द से जल्द नियंत्रण पा ले, क्योंकि इस संक्रमण के दूसरे एशियाई देशों में फैलने से विश्व अर्थव्यवस्था पर बहुत घातक प्रभाव पड़ सकता है। भारत सरकार और हमारे स्वास्थ्य विशेषज्ञ चीन की स्थिति पर गहराई से नजर रखे हुए हैं और यह संतोष की बात है कि व्यापक टीकाकरण अभियान के जरिये 68 प्रतिशत से अधिक लोगों का पूर्ण टीकाकरण करा लिया गया है। 

लेकिन किसी भी महामारी के जोखिम को कभी भी कम करके नहीं आंकना चाहिए। तब तो और, जब उसकी कई लहरों के आने का अंदेशा हो। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रोटोकॉल का अनुसरण करने के साथ-साथ सभी एहतियाती बंदोबस्त करने की जरूरत है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व उनके समकालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने शुरू-शुरू में इस वायरस का उपहास उड़ाया था और इसकी बहुत बड़ी कीमत इन दोनों देशों के नागरिकों को चुकानी पड़ी है।

कोविड-19 के बाद लोगों के स्वास्थ्य में जो भी बदलाव महसूस हो रहा है, उसके गहन अध्ययन की जरूरत है। यह सर्वविदित है कि दुनिया भर में अस्वाभाविक मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है। हमारे यहां भी जिस तरह से कमउम्र लोगों में दिल का दौरा पड़ने की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसके परिप्रेक्ष्य में इस महामारी और टीकों के प्रभाव को आंकने की आवश्यकता है। बीजिंग आज अपनी अपारदर्शिता की कीमत चुका रहा है। दुनिया के देशों को इससे सबक सीखते हुए महामारी संबंधी अपनी अगली तैयारी करनी चाहिए।








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