वेबसाइट की आड़ में पत्रकार बनाने का गंदा धंधा


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”पत्रकार बनने का सुनहरा मौका। आवश्यकता है देश के हर जिले में रिपोर्टर, कैमरामैन और ब्यूरो की… दिए गए नम्बर पर जल्द से जल्द सम्पर्क करें।” ये मै नहीं कह रहा हूं। आज कल धड़ल्ले से खुल रही न्यूज वेबसाइट कह रही हैं। सोशल मीडिया पर मज़ाक बनाकर रख दिया है। जिधर देखो आवश्यकता है। पता नहीं इनको कितनी आवश्यकता होती है। काफी दिनों से whatsaap के ग्रुप में संदेश देख रहा था। ”आवश्यकता है देश के हर जिले में रिपोर्टर, कैमरामैन की।” मैने भी सोचा चलों आवश्यकता की पूर्ति की जाए। तुरंत चैट पर बात करना शुरू कर दिया। मुझे आप के वेब चैनल में रिपोर्टिग करनी है। जवाब आया, अभी किस न्यूज पेपर में हैं, मेरा जवाब था कहीं नहीं बस स्वतंत्र पत्रकार हूं।
सवाल पर सवाल धागे जा रहे थे, रिपोर्टर क्यों बनना चाहते हो, जवाब मे मैने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, मैं हमेशा रिपोर्टर बनना चाहता था, पर कहीं से शुरूआत नहीं मिल पाई है। जनाब ने कहा हमारे यहां आप को शुरूआत मिलेगी। मेरी भी खुशी का ठिकाना न रहा आखिर संवाददाता बनने जा रहा था। फटाफट 7 , 8 फोटो भेजी और कहा कि हमारे वेब पोर्टल में ऐसे खबरें चलती हैं। और हमारे साथ जुड़ने के लिए आप को 3000 रूपए जमा करना होगा। जिसमें हम आप को आई कार्ड, अथाँरिटी लेटर, माइक आई डी देगें। साथ ही विज्ञापन में 50 प्रतिशत का कमीशन देगें।
चलो ये तो रही उनकी बात। मैने भी कहा कि अगर आप इतना कुछ दे रहे हैं तो ये भी बता दें कि वेतन कितना दे सकते हैं। वेतन का नाम सुनकर उनके पांव तले की जैसे जमीन खिसक गई हो। उन्होनें कह दिया कि वेतन तो नहीं हम दे पाएगें। विज्ञापन का कमीशन ही होगा। सबसे प्यारा जवाब उनका था कि सीखने के लिए अब आप को इतना तो करना होगा। ये कोई पहला वाकया नहीं था। इससे पहले भी मुझे पत्रकार बनाने के लिए 5000 रूपए की मांग की गई थी। 5000 लो और आईडी और लेटर लो। मेरी बदकिस्मती थी कि मुझे ये सब पहले नहीं पता था, वरना लाखों रूपए खर्च कर पत्रकारिता का कोर्स क्यों करता। सस्ते में निपट जाता, 3000 हजार रूपए में या पांच हजार में और बन जाता पत्रकार।
मैने भी पूछा था कि वेतन तो दोगे नहीं तो न्यूज को कैसे कवर करेगें । तो जवाब भी था कि कमाने के बहुत धंधे है इसमें। मतलब आई कार्ड दिखाकर दलाली करो और मार खाओ। न्यूज की खुल रही लगातार वेबसाइट की आड़ में पत्रकार बनाने का गोरखधंधा बढ़ता ही जा रहा है। पत्रकार बनाने के नाम पर रकम वसूली जा रहा है। ऐसी अनेक वेबसाइट हैं और चैनल है जो पैसे लेकर आई कार्ड, माइक आईडी देते हैं। वेतन के नाम पर विज्ञापन में कमीशन और दलाली करना सिखाते हैं। अच्छा धंधा बन गया है कमाने का। दूसरों के साथ खिलवाड़ का।
यही नहीं कुछ अख़बार भी इसी श्रेणी में आते हैं। पैसे लेकर आई कार्ड बना देते हैं और उस आई कार्ड से लोग रौब झाड़ते हैं। अधिकतर गाडियों में प्रेस लिखा मिलेगा। चाहे वह पत्रकारिता कर रहा हो या नही। इससे कोई मतलब नही है। ऐसे संस्थान जो पैसे लेकर प्रेस कार्ड बनाते हैं उनके खिलाफ कार्यवाही की जरूरत है। ऐसा करके वो पत्रकारिता को बदनाम करने का काम कर रहे हैं। उनकों न ख़बर से मतलब है न ही उस व्यक्ति से उनको मतलब है पैसे से। पैसे दो और प्रेस कार्ड लो।मीडिया के लोगों को भी ऐसे संस्थान के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
अगर आप न्यूज वेबसाइट चला रहे हैं, तो अपने कर्मचारी को वेतन नहीं दे सकते हैं तो उनसे वसूली भी मत करें। लोग  भी बड़े रूतबे में आकर इनके चक्कर में फंस जाते हैं। जितने पैसे का वो कार्ड बनाकर देते हैं उतने में खुद अपनी न्यूज  वेबसाइट शुरू कर सकते हैं। अगर पत्रकारिता का इतना ही शौक है तो। लेकिन पत्रकारिता कौन करना चाहता है। वो तो बस प्रेस कार्ड के दमपर पुलिस चेकिंग में बचना चाहते है, किसी सरकारी दफ़्तर में जाकर रौब दिखाना चाहते हैं। इक बार पुलिस गाड़ी का पेपर चेक कर रही थी इस दौरान एक लड़के की गाड़ी को रोका गया, उसने तुरंत प्रेस कार्ड दिखाया और चला गया। उस लड़के को मै जानता हूं।  बी फारमा की पढाई कर रखा है। मैने पूछा ये कार्ड कहा से आया तुम्हारे पास तो उसका जवाब कि उसके दोस्त ने बनाया है। जबकि पत्रकारिता से उसका कोई लेना देना नहीं है। अगर बेवसाइट, अख़बार, चैनल ऐसे ही पैसे लेकर प्रेस कार्ड बनाते रहे तो वह दिन दूर नहीं है जब पत्रकार और पत्रकारिता की कोई वैल्यू नहीं रह जाएगी। लेख: manish sharma के Facebook page से लिया गया है

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